उत्तर-(i) प्रकाश (Light)-प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया
में होती है, इसलिए प्रकाश का प्रकार तथा उसकी तीव्रता (intensity) इस क्रिया को प्रभावित करती है।
प्रकाश की लाल एवं नीली किरणें तथा 100
फुट कैण्डल से 3000 फुट कैण्डल तक की प्रकाश तीव्रता प्रकाश-संश्लेषण की दर को बढ़ाती है
जबकि इससे उच्च तीव्रता पर यह क्रिया रुक जाती है।
(ii) CO2 वातावरण में CO, की मात्रा 0.03% होती है। यदि एक सीमा तक CO, की मात्रा बढ़ाई जाए तो प्रकाश-संश्लेषण की दर भी बढ़ती है लेकिन अधिक होने से घटने लगती है। (ii) तापमान (Temperature) प्रकाश-संश्लेषण के लिए 25-35°C
का तापक्रम सबसे उपयुक्त होता है। इससे अधिक या कम होने पर प्रकाश-संश्लेषण दर घटती-बढ़ती रहती है
(iv) जल (Water) इस क्रिया के लिए जल एक महत्त्वपूर्ण यौगिक है। जल की कमी से प्रकाश-संश्लेषण क्रिया प्रभावित होती है। जलाभाव में जीवद्रव्य की सक्रियता घट जाती है, स्टोमेटा बन्द हो जाते हैं और प्रकाश-संश्लेषणकी दर घट जाती है।
(v) ऑक्सीजन (0,)-प्रत्यक्ष रूप से ऑक्सीजन की सान्द्रता से प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया प्रभावित नहीं होती है। वायुमण्डल में 0, की मात्रा बढ़ने से प्रकाश-संश्लेषण की दर घटती है। ऐसा माना जाता है।
Qno2एक पारिस्थितिकी तंत्र में कार्बन चक्र का को वर्णन करें।
Ans. वातावरण में कार्बन, कार्बन डाईऑक्साइड गैस के रूप में विद्यमान रहता है। ये सभी जीवों के लिए नितान्त आवश्यक तत्व है, क्योंकि कोई भी जीव बिना कार्बन के नहीं होता। वातावरण में कार्बन की अनुकूलता मात्रा में लगभग 0.03-0.04% होती है।कार्बन डाइऑक्साइड जलाशयो (तालाब, झील, समुद्र आदि) में विद्यमान रहती है।
जब तक इनकी मात्रा अनुकूलतम होती है, सभी क्रियाएँ सुगमतापूर्वक होती रहती है।इनकी मात्रा अनुकूलतम से अधिक होने पर जीवों को श्वसन में कठिनाई होने लगती है। यदि वातावरण में इनकी मात्रा अनुकूलतम से कम हो जाती है, तो पौधों की प्रकाश-संश्लेषण किया पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
इसीलिए प्रकृति द्वारा कार्बन चक्र से वातावरण में अनुकूलतम कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा नियंत्रित की जाती है। जीवमंडल कार्बन चक्र निम्नलिखित चरणों में पूर्ण होती है • हरे पौधे, वातावरण से कार्बन डाइऑक्साइड लेकर प्रकाश-संश्लेषण क्रिया द्वारा कार्बोहाइड्रेट्स का निर्माण करते हैं।
इस प्रकार कार्बन खाद्य में पहुँचती है। सभी जीव (पौधे तथा जंतु श्वसन द्वारा कार्बन डाईऑक्साइड वातावरण में छोड़ते हैं। जीवो की मृत्यु के पश्चात् उनमें विघटन होता है, और उसके फलस्वरूप कार्बन डाइऑक्साइड फिर से वातावरण में चली जाती है। इसी प्रकार जीवों के उत्सर्जी पदार्थों से भी कार्बन डाइऑक्साइड वातावरण में पहुँचती है।
• हमे पौधे से लाखों वर्षों से कोयला, गैस, तेल आदि प्राप्त होते हैं। इन्हें जीवाश्मी ईंधन कहते हैं। इस ईंधन से मनुष्य परिवहन गाड़ियाँ चलाता है, तथा भोजन पकाता है और इस प्रकार Co, को वातावरण में छोड़ता है।जीवाश्मी ईंधन में ऊर्जा होती है जो पौधों द्वारा सूर्य से ग्रहण की जाती है ! और अंसख्य वर्षों में यह जीवाश्मी ईंधन के रूप में उपलब्ध होती है।
बड़े-बड़े जलाशयों की ऊपरी सतह के जल में कार्बन डाइऑक्साइड घुली रहती है,! जो कार्बनिट्स का निर्माण करती है। इन कार्बनिट्स से जलीय पौधे प्रकाश संश्लेषण क्रिया के लिए Co, प्राप्त करते है!
क्योंकि उन्हें वायु की Co, उपलब्ध नहीं होती।
जलीय पौधों से कार्बन डाइऑक्साइड जलीय खाद्य श्रृंखला में स्थानांतरित हो जाती है।उदाहरण, शाकाहारी मछलियाँ पौधों को खाती हैं और उनको मांसहारी जीव खाते हैं, आदि। जलीय पौधे तथा जन्तु श्वसन क्रिया में Co, जल में घोल देते हैं, जो प्रायः फिर से जलीय पौधे प्रकाश संश्लेषण के लिए उपयोग में ले लेते हैं।
घोघे, सीपी तथा अन्य मोलस्क जल से Cog को अवशोषित करते है। Co को कैल्शियम से संयुक्त करा कर कैल्शियम कार्बनिट (CaCo) का खोल बनाते हैं। मृत मोलस्क के कवच (Shell) समुद्र की तली में जमा होते रहते है।
0 Comments