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'सुंदर का ध्यान कहीं सुंदर है' शीर्षक कविता का भावार्थ लिखिए।(10+2)


उत्तर- हिंदी के यशस्वी कवि गोपाल सिंह 'नेपाली' की कविता 'सुन्दर का ध्यान कहीं सुन्दर है' में मानवीय सौंदर्य और भावना की श्रेष्ठता को रेखांकित किया गया है। ईश्वर हो मनुष्य को सौंदर्य दृष्टि देता है। लेकिन वह मौन भी रहता है। मंदिर के देवता से बड़ा 'घट-घट में रमता राम' है। वह मधुर स्वर में बोलता है। यहाँ इस कविता का कथ्य है। अँधियारी रातों से मानवीय 
मुस्कान अधिक सुंदर है। 

मुख से भी अधिक सुंदर मुख की सुंदरता पर लज्जा का आँचल सुंदर है।कवि ने अन्य लोगों की तरह सारी दुनिया देखी प्रिय को देखने पर उसमें सब कुछ पाया।सांसारिक ज्ञान की महिमा से अधिक सुंदर प्रिय की पहचान है।ईश्वर सुंदर है। पर वह जल्दी अपनी ममता का उत्तर नहीं देता है। यह उसकी सुंदरताकिंचित निष्ठुर लगती है।

 मनुष्य के अरमान ईश्वर की कृपा से कहीं अधिक सुंदर लगते हैं।प्रिय की मुस्कान सुंदर है। मंदिर का देवता मौन रहता है। उससे अधिक सुंदर तो मन का देवता है। वह मधुर बोलता है। अत: मदिर-मस्जिद-गिरिजाघर से मन का भगवान कहीं अधिक सुंदर है। प्रिय की मुस्कानकहीं अधिक सुंदर है।निष्कर्षतः, मनुष्य मंदिर के देवता से अधिक सुंदर है। यहाँ 'नेपाली' जी को मानववादी और मानवतावादी दृष्टि मसृण रूप में प्रकट हुई है। इस कविता का माधुर्य रेखांकित करने योग्य है।

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