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ऊर्जा पट्टी क्या है? इसके आधार पर चालक, अर्द्धचालक व कुचालक में अंतर करें। किसी अर्द्धचालक के प्रतिरोध तापमान में परिवर्तन के साथ किस तरह बदलता है, समझाएँ।


Ans. ठोस के पट्टा सिद्धांत (Band theory of Solids)- इस सिद्धांत के अनुसार प्रत्येक परमाणु में इलेक्ट्रॉन न्यूक्लिस से दृढतापूर्वक बंधा रहता है। इस प्रकार के परमाणु में ऊर्जा तल-चित्र (a) में दिखाए गए हैं। इस प्रकार के कुछ परमाणु एक साथ मिल जाएँ तो प्रत्येक दशा के संगत थोड़ा भिन्न ऊर्जा का असतत ऊर्जातल होगा जैसा चित्र (b) में दिखाया गया है। 

ठोस में परमाणु की संख्या अत्यधिक होती है। इससे नया ऊर्जातल बहुत ही समीप होता है जिससे पट्टे (bands) बनते हैं, जैसा चित्र (c) में दिखाया गया है। 1s 2s, 2p तथा 3s पट्टी में ऊर्जातल सतत है। अगर N परमाणु हो तो प्रत्येक के संगत m दशाओं की संख्या (2/+1) है और एक दिए हुए s के लिए  के दो मान 2 से निरूपित होते हैं।


ऊर्जा बैण्ड के आधार पर चालकों के लक्षणों की व्याख्या चित्रानुसार धातुओ (चालको) की ऊर्जा बैण्ड रचना वैसी होती है जिसमें कण्डक्शन बैण्ड तथा वैलेन्स बैण्ड एक-दूसरे से ओवरलैप (एक दूसरे पर चढ़े) होते हैं या कण्डकशन बैड अंशतः भरे होते है।

Zn में बैलेन्स वैण्ड कण्डक्शन बैण्डों पर चढ़े होते है तथा Na में अंशतः भरे होते हैं। फर्मी स्तर के नीचे से बहुत से इलेक्ट्रॉन जो उच्च स्तरों में जा सकते हैं, जो कि
फर्मों स्तर के ऊपर होते हैं।
वैसे इलेक्ट्रॉन मुक्त इलेक्ट्रॉन की भांति व्यवहार करते है। जब चालकों से विद्युत क्षेत्र आरोपित किया जाता है तो ये मुक्त इलेक्ट्रॉन विद्युतीय क्षेत्र की दिशा के विपरीत दिशा में गतिशील हो जाते है।

ऊर्जा बैण्ड के आधार पर अचालकों के लक्षणों की व्याख्या- चित्रानुसार अचालको में फॉरबीडेन ऊर्जा अन्तराल बहुत बड़ा होता है। हीरा के लिए फॉरबीडेन ऊर्जा अन्तराल 6. eV है, यानि इलेक्ट्रॉन को पूर्ण भरे वैलेन्स बैण्ड से कण्डक्शन बैण्ड पर कूदने में आवश्यक न्यूनतम ऊर्जा 6 eV लगता है।

जब विद्युतीय क्षेत्र वैसे ठोस में आरोपित किये जाते है तो इलेक्ट्रॉनों को वैसे अधिक परिमाण के ऊर्जा प्राप्त करने में कठिनाई होती है। इसलिए कण्डक्शन बैण्ड लगातार रिक्त रह जाता है। इलेक्ट्रॉन का प्रवाह नहीं होता है अर्थात् वैसे ठोसी से धारा प्रवाहित नहीं होती है इसलिए वे अचानक (कुचालक) कहे जाते हैं।

ऊर्जा बैण्ड के आधार पर अर्द्धचालकों के लक्षणों की व्याख्या :--- चित्रानुसार अर्द्धचालको की ऊर्जा बैण्ड संरचना प्रदर्शित है। इसका अन्तराल फॉरवीडेन ऊर्जार्ज अचालक की तुलना में बहुत छोटा होता है। सिलिकॉन के लिए फॉरबीडेन ऊर्जा अन्तराल 1.1 eV है। सिलिकॉन के इलेक्ट्रॉनिक संरचना हीरे की इलेक्ट्रॉनिक संरचना के समान होती है।

 किन्तु फॉरबीडेन ऊर्जा अन्तराल की नम चौड़ाई के कारण वैलेन्स बैण्ड मे इलेक्ट्रॉन सरलता से कण्डक्शन बैण्ड में चले जाते हैं, इसलिए सिलिकॉन की चालकता, चालक, तथा अचालक, के बीच होती है, और उसे अर्द्धचालक कहते हैं।

अर्द्धचालक पर तापक्रम का प्रभाव- किसी अर्द्धचालक का प्रतिरोध तापमान में परिवर्तन के साथ बदलता रहता है। जब तापमान बढ़ता है तब अर्द्धचालक का प्रतिरोध घटता है तथा जब तापमान घटता है तब प्रतिरोध बढ़ता है। यही कारण है कि निम्नताप पर जर्मेनियम कुचालक होता है। लेकिन उच्च ताप पर यही जर्मेनियम सुचालक हो जाता है।

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