वे मानवीय संवेदना जागृत करनेवाले निबंधकार हैं। प्रस्तुत निबंध में कविवर रवीन्द्रनाथ ठाकुर के व्यक्तित्व एवं कृतित्व का मूल्याँकन आचार्य द्विवेदी ने उपस्थित किया है।रवीन्द्रनाथ ठाकुर बँगला भाषा के अद्वितीय लेखक हैं।
उनकी रचनाएँ घर-घर में पढ़ी जाती हैं। रवीन्द्रनाथ का जन्म सन् 1861 ई० में और निधन 1941 ई० में हुआ था। वह बाबू द्वारकानाथ ठाकुर के पौत्र और देवेन्द्रनाथ ठाकुर के पुत्र हैं।
उनका वंश अपनी विद्वता के लिए चिरकाल से प्रसिद्ध है। रवीन्द्र बाबू को माता का प्यार नहीं मिला था। होनहार वीरवान के होत चिकने पात' कहावत के अनुसार रवीन्द्र बाबू बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि के थे। रवीद्र बाबू अभिनेता भी थे। वे संगीत विद्या के पूरे ज्ञाता थे।
रवीन्द्र बाबू की भाषण कला भी प्रशंसनीय थी। श्रोता उनके भाषण मंत्र मुग्ध होकर सुनते थे। रवीन्द्रबाबू देश के बड़े भक्त थे। स्वदेश भक्ति पर उन्होंने अनेक कविताएँ लिखी हैं।
मातृभूमि के वे पक्के आराधक थे। उनकी स्वदेश भक्ति संकीर्ण नहीं थी। उनका विदेशियों के प्रति भी द्वेष भाव नहीं था। उनकी राजनीति चरित्रवान थी।
औपचारिक स्कूल-कॉलेजों की शिक्षा उन्होंने नहीं ली। उन्होंने देश-विदेश का पर्यटन खूब किया। बोलपुर में रवीन्द्रबाबू का एक शिक्षण संस्थान है। उसका नाम है विश्वभारती शांतिनिकेतन
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