समाजवाद का भी कम असर उनपर न था।'मंगर' बेनीपुरीजी का एक जीता-जागता शब्दचित्र है- शब्दों से खींचा गया चित्र है।मंगर एक कृषक मजदूर था।वे पुनः दूध देने लगते हैं। सुई का बात'गौरा' का निधन हो गया।
लेखिकसमासतः, 'गौरा' एक अत्यंत मदेनेवाला रेखाचित्र।5. 'कविवर रवीन्द्रनाथ ठाकके व्यक्तित्व पर प्रकाशउत्तर- 'कविवर रवीन्द्रनाथ ठाकुर' द्विवेदी हैं।
'अशोक के फूल', 'कुटज' प्रवाह' इत्यादि उनके प्रसिद्ध निबंध-संग्र सभ्यता यात्रा पर दृष्टि डालते हैं। वे मान निबंध में कविवर रवीन्द्रनाथ ठाकुर के ने उपस्थित किया है।
रवीन्द्रनाथ ठाकुर बँगला भाषा के अरवीन्द्रनाथ का जन्म सन् 1861 ई द्वारकानाथ ठाकुर के पौत्र और देवेन्द्रनाथ चिरकाल हट्टा-कट्ठा शरीर कमर में भगवा।
कंधे पर हल हाथ में पैना। आगे-आगे बैल का जोड़ा। अपनी आवाज के हहास से ही बैलों को भगाता खेतों की ओर सुबह-सुबह जाता। मंगर स्वाभिमानी था।
मंगर का स्वाभिमान गरीबों का स्वाभिमान ? मंगर ने किसी की बात कभी बर्दाश्त नहीं की और शायद अपने से बड़ा किसी को, मन से, माना भी नहीं । चेनीपुरीजी का यह शब्दचित्र अत्यन्त चुस्त-दुरुस्त एवं प्रभावशाली बन पड़ा है। सच है—बेनीपुरीजी कलम के जादूगर थे।
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