उत्तर-DNA द्विकुण्डलित संरचना है इसे जे० डी० वॉटसन और एफ० एच० सी० क्रिक तथा विलकिंस ने सन् 1953 में प्रस्तावित किया था। इसके लिए सन् 1962 में इन्हें नोबेल पुरस्कार प्राप्त हुआ था।
DNA की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं- (i) द्विचक्राकार DNA में पॉली न्यूक्लिओटाइड श्रृंखला एक अक्ष रेखा पर विपरीत दिशा में होती है।
प्रत्येक चक्राकार चक्र की लम्बाई 3.2mm से 34 A° तक होती है जिसमें 10 न्यूक्लिओटाइड विद्यमान होते हैं। (ii) दोनों शृंखलाएँ फॉस्फेट और शर्करा के अणुओं से बनती हैं। नाइट्रोजनी समाधार (base) शकरा के अणुओं से पीछे लगे होते हैं।
(iii) श्रृंखलाओं के आधार लम्बी अक्ष रेखा के सीधे कोणीय तल से लगे होते हैं।
(iv) दोनों श्रृंखलाएँ एक-दूसरे से कमजोर हाइड्रोजन बन्धों से जुड़ी रहती हैं। ये बंध आधार के जोड़ों के बीच में पाए जाते हैं। एडीनीन और थाइमीन आधार के बीच में सदा दो हाइड्रोजन बंध तथा ग्वानीन और साइटोसीन आधार के बीच में सदा तीन बंध होते हैं।
(v) दोनों श्रृंखलाओं में एडीनीन के अणु थाइमीन से तथा ग्वानीन के अणु साइटोसिन से श्रृंखला बनाते हैं।
(vi) DNA की चौड़ाई 20A° तथा आधार
जोड़ों के बीच 3.4A होता है।
डीएनए-डीआक्सीराइवोन्यूक्लिओटाइड्स का एक लंबा बहुलक है- डीएनए की सामान्यतया इसमें मिलने वाले न्यूक्लियोटाइड्स (न्यूक्लियोटाइड्स युग्म का संबंध
युग्म से है) पर निर्भर है।
यह किसी भी जीव की विशेषता है। उदाहरणार्थ
जीवाणुभोजी जिसे 174 कहते हैं इसमें 5386 न्यूक्लिओटाइडस मिले हैं, जीवाणुभ लैंब्डा में 48502 क्षार युग्म, इस्चेरिचिया कोलाई में 4.6x10° क्षार युग्म व मनुष्य के | अगुणित डीएनए में 3.3x10° क्षार युग्म है। अब इस लंबे बहुलक की संरचना का वर्ष करेंगे
पॉलीन्यूक्लियोटाइड शृंखला (डीएनए या आरएनए) की रासायनिक संरचना संक्षेप में निम्ना है। न्यूक्लियोटाइड के तीन घटक होते हैं - नाइट्रोजनी क्षार, पेंटोस शर्करा (आरएनए के मामले में रिबोस तथा डीएनए में डीऑक्सीरिबोज) और एक फॉस्फेट ग्रुप नाइट्रोजनी क्षार
दो प्रकार के होते है
प्यूरीन्स (एडेनीन व ग्वानीन) व पायरिमिडीन (साइटोसीर यूरेसिल व थाइमीन)। साइटोसीन डीएनए व आरएनए दोनों में मिलता है जबकि थाइमोन
डीएनए में मिलता है।
थाइमीन के स्थान पर यूरेसील आरएनए में मिलता है। नाइट्रोजनों क्षार नाइट्रोजन ग्लाइकोसिडिक कंध द्वारा पेंटोस शर्करा से जुड़कर न्यूक्लियोसाइड बनाड
है जैसे एडीनोसीन या डीऑक्सी एडीनोसीन, ग्वानोसीन या डीऑक्सी ग्वानोलीन साइटीडीन या डीऑक्सीसाइटीडीन व यूरीडीन या डीऑक्सी थाइमीडीन। जब फॉस्फेट
समूह फॉस्फोएस्टर बंध द्वारा न्यूक्लीयोसाइड के 5' हाइड्रॉक्सील समूह से जुड़ जाता है
तब संबंधित न्यूक्लियोटाइड्स (डीऑक्सी न्यूक्लियोटाइड्स उपस्थित शर्करा के प्रकार पार
निर्भर है) का निर्माण होता है। -न्यूक्लियोटाइड्स 3'-5' फॉस्फोडाइस्टर बंध द्वारा जुड़कर डाईन्यूक्लियोटाइड का निर्माण करता है।
इस तरह से कई न्यूक्लियोटाइड्स
जुड़कर एक पॉलीन्यूक्लियोटाइड्स श्रृंखला का निर्माण करते हैं। इस तरह से निर्मिः बहुलक के राइबोज शर्करा के 5' किनारे पर स्वतंत्र फॉस्फेट समूह मिलता है जिस
पॉलीन्यूक्लियोटाइडशृंखला का 5 किनारा कहते हैं। ठीक इसी तरह से बहुलक के दूसा श्रृंखला का राइबोज मुक्त 3' - हाइड्रॉक्सील समूह से जुड़ा होता है। पॉलीन्यूक्लियोटाइट श्रृंखला का 3 किनारा कहते हैं

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