मुस्कान अधिक सुंदर है।
मुख से भी अधिक सुंदर मुख की सुंदरता पर लज्जा का आँचल सुंदर है।कवि ने अन्य लोगों की तरह सारी दुनिया देखी प्रिय को देखने पर उसमें सब कुछ पाया।सांसारिक ज्ञान की महिमा से अधिक सुंदर प्रिय की पहचान है।ईश्वर सुंदर है। पर वह जल्दी अपनी ममता का उत्तर नहीं देता है। यह उसकी सुंदरताकिंचित निष्ठुर लगती है।
मनुष्य के अरमान ईश्वर की कृपा से कहीं अधिक सुंदर लगते हैं।प्रिय की मुस्कान सुंदर है। मंदिर का देवता मौन रहता है। उससे अधिक सुंदर तो मन का देवता है। वह मधुर बोलता है। अत: मदिर-मस्जिद-गिरिजाघर से मन का भगवान कहीं अधिक सुंदर है। प्रिय की मुस्कानकहीं अधिक सुंदर है।निष्कर्षतः, मनुष्य मंदिर के देवता से अधिक सुंदर है। यहाँ 'नेपाली' जी को मानववादी और मानवतावादी दृष्टि मसृण रूप में प्रकट हुई है। इस कविता का माधुर्य रेखांकित करने योग्य है।
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