इस प्रकार के युग्मक संलयन को बाह्य निषेचन कहते हैं। बाह्य निषेचन करने वाले जीव दो लिंगों में व्यापक समकालिता प्रदर्शित करते हैं!
तथा बाहरी माध्यम (जल) युग्मक संलयन के अवसर को बढ़ाने के लिए काफी संख्या में युग्मक निर्मुक्त करते हैं।
ऐसा Bony fishes एवं मेढ़क में होता है।
फलस्वरूप भारी संख्या में संताने उत्पन्न होती हैं, परन्तु इसमें सबसे बड़ी कमी यह है कि इनकी सतानें दुश्मन के शिकार होने जैसी नाजुक स्थिति से गुजरती हैं।
इस कारण इन्हें बड़े संघर्ष से गुजरना पड़ता है साथ ही कई तरह की जलीय अनुकूलता लाना पड़ता है।
बाह्य निषेचन का सबसे बड़ा नुकसान होता है कि इसमें निषेचन की अनिश्चिता हमेशा बनी रहती है।
इस कारण से ही ऐसे जीव काफी संख्या में (युग्मक) उत्पन्न करते हैं जिससे कि निषेचन की संभावना बन सके। gametes
Q(2) मरुस्थलीय एवं जलीय पौधों में पाया जाने वाला दो-दो अनुकूलन लिखें।
Ans. अनेक मरुस्थलीय पौधों की पत्तियों की सतह पर मोटी उपत्वचा (क्यूटिकल)होती है उनके रंध (स्टोमैटा) गहरे गर्त में व्यवस्थित होते हैं,! ताकि वाष्पोत्सर्जन द्वारा जल की न्यूनतम हानि हो, उनके प्रकाश संश्लेषी मार्ग भी विशेष प्रकार के होते हैं जिसके कारण वे अपने रंध दिन के समय बंद रख सकते हैं। कुछ मरुस्थलीय पादपों जैसे नागफनी, कैक्टस आदि में पत्तियाँ नहीं होती बल्कि वे कांटे के रूप में रुपातंरित हो जाती हैं !
और प्रकाश-संश्लेषण का प्रकार्य चपटे तनों द्वारा होता है। जल की कमी के प्रति पादपों के प्रकाश संश्लेषी (सीएएम) मार्ग भी विशेष प्रकार के होते हैं जिसके कारण वे अपने रंध दिन के समय बंद रख सकते हैं!
कुछ मरुस्थलीयपादपों जैसे नागफनी (ओपशिया) कैक्टस आदि में पत्तियाँ नहीं होती बल्कि वे कांटें केरूप में रूपातंरित हो जाती है।
यह पौधे जिन जगहों या स्थानों पर उड़ते हैं वहां पर्याप्त पानी की बहुत अधिक कमी होती है।
या इस प्रकार का होता है कि पौधे उसे प्रयोग नहीं करते नागफनी यूफोर्बिया, एकासिया, कैजुराइना
इत्यादि कैक्टस वर्गीय शुष्क स्थानों एवं रेगिस्तानों में उगने वाले पौधे मरूद्भिद पौधे के सुंदर उदाहरण उदाहरण है। यह पौधे आकार में छोटी तथा बहुवर्षीय होते हैं
अतः इसे सिंपल भाषा में समझने के लिए:-- वे पौधे जो शुष्क जगहों पर उगते हैं मरूद्भिद पौधे कहलाते है।
इनके जड़ें पानी की खोज में अति विकसित शाखान्वित
होती जाती है जिससे इनकी जल अवशोषण की छमता अधिक हो जाती है।
तना शाखान्वित एवं छोटी होती है। जिस पर रोम क्यूटिकिल कि पढ़ते रहती है उनसे पानी की क्षय कम से कम होती है। नागफनी कोकोलोबा तथा सतावर के पौधे मे तना मांसल या पत्ती के सदृश्य होकर पानी का संचय करती है। वाष्पोत्सर्जन की प्रक्रिया को कम करने के लिए पत्तियां छोटी छोटी होती है या सड़कों में रूपांतरण हो जाती है।
कुछ-कुछ मरुस्थलीय पौधे जैसे करोल मैं तो पत्तियां पूर्ण रूप से अनुपस्थित होती है। मरुस्थलीय पौधे में आंतरिक संवहन के लिए आवश्यक जाइलम एवं फ्लोएम उत्तक सुविकसित होते हैं।
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