'गौरा' शीर्षक रेखाचित्र की रचयिता हैं महादेवी वर्मा महादेवीजी कवयित्री है। उनका गद्य भी कम शक्तिशाली नहीं है। 'कवियों की कसौटी गद्य' कहा गया है। उनको लेखनी इस कथन का समर्थन एवं उदाहरण है। 'स्मृति की रेखाएँ', 'अतीत के चलचित्र' और श्रृंखला की कड़ियाँ'- रेखाचित्र और संस्मरण के क्षेत्र में उनकी महत्त्वपूर्ण कृतियाँ हैं। '
गौरा' एक मार्मिक रचना रेखाचित्र है। इसमें गाय के सौंदर्य और गुण का सजीव वर्णन किया गया है। 'गौरा' एक गाय का नाम है जो महादेवी वर्मा को बहन के घर से मिली थी।गौरा के पुष्ट लचीले पैर, भरे पुट्ठे, चिकनी भरी हुई पीठ, लंबी सुडौल गरदन, निकलते हुए छोटे-छोटे
सींग, भीतर की लालिमा की झलक देते हुए कमल की दो अधखुली पंखुड़ियों जैसे कान, लंबी और अंतिम छोर पर काले सघन चामर का स्मरण दिलानेवाली पूँछ, सब कुछ साँचे में ढला हुआ-सा था। गाय को मानो इटेलियन मारवल में तराशा गया हो।
एक नया सत्य उद्घाटित हुआ। प्रायः कुछ ग्वाले ऐसे घरों में जहाँ उनसे अधिक दूध लिया जाता है, गाय का आना सह नहीं पाते । अवसर मिलते ही वे गुड़ में लपेटकर सुई उसे खिलाकर उसकी असमय मृत्यु निश्चित कर देते हैं। गाय के मर जाने पर उन घरों में ये पुनः दूध देने लगते हैं।
मुई की बात ज्ञात होते ही ग्वाला गायब हो गया ।'गौरा' का निधन हो गया । लेखिका कहती हैं धन्य है मेरा गोपालक देश ! समासतः, 'गौरा' एक अत्यंत मार्मिक रेखाचित्र है, भारतीय चेतना को अभिव्यक्ति देनेवाला रेखाचित्र।
दुग्ध दोहन की समस्या कोई स्थायी समाधान चाहती थी। नगरों में नागरिक तो दुहना जानते ही नहीं थे और जो गाँव से आए थे, वह अनाभ्यास के कारण यह कार्य इतना भूल चुके थे कि घंटों लगा देते थे। गौरा के दूध देने के पूर्व जो ग्वाला लेखिका के यहाँ दूध देता था, जब उसने इस कार्य के लिए अपनी नियुक्ति के विषय में आग्रह किया, तब लेखिका को अपनी समस्या का समाधान मिल गया ।
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